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मकर संक्रांति: इतिहास के पन्नों में छिपा सूरज और साधना का उत्सव.

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मकर संक्रांति: इतिहास के पन्नों में छिपा सूरज और साधना का उत्सव.
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मकर संक्रांति: इतिहास के पन्नों में छिपा सूरज और साधना का उत्सव. भारतवर्ष में त्योहारों का सिलसिला थमता नहीं है, और इसी कड़ी में आता है मकर संक्रांति का पर्व, जो हमें सूर्य के उत्तरायण की ओर ले जाता है।

यह सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही परंपराओं का एक रंगीन सफर है, जिसमें इतिहास, संस्कृति और प्रकृति का खूबसूरत संगम होता है।

हिंदू धर्म में एक मान्यता है कि जो व्यक्ति उत्तरायण के पवित्र काल में शरीर त्यागता है, उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह घायल हो गए थे, लेकिन अपने पिता से मिले वरदान के कारण वे अपनी मृत्यु का समय चुन सकते थे। इसलिए उन्होंने अपनी मृत्यु को कुछ दिनों के लिए टाल दिया और उत्तरायण के शुभ काल में प्राण त्यागे।

ऋषियों की विद्या का फल:

मकर संक्रांति के इतिहास का पता हमें प्राचीन वैदिक ग्रंथों से मिलता है। सूर्य के उत्तरायण को ऋषियों ने एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना माना और इसका उत्सव मनाने की परंपरा शुरु की।

ज्योतिष के अनुसार, इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, और दिन बड़े होने लगते हैं। इसे देवताओं का दिन माना जाता है, जो दक्षिणायण के अंधकार के बाद उजाले का संदेश लाता है।

कृषि का उल्लास:

मकर संक्रांति कृषि संस्कृति से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। यह फसल कटाई का समय होता है, और किसानों के लिए खुशियों का मौसम होता है।

फसल के लिए सूर्य का उत्तरायण शुभ माना जाता है, और इसी वजह से इस दिन को फसल का त्योहार भी कहा जाता है।

पंजाब में लोहड़ी की आग किसानों के आभार का प्रतीक है, तो दक्षिण भारत में पोंगल फसल का स्वागत करता है।

विविधता में एकता:

हालांकि मकर संक्रांति का मूल एक है, लेकिन इसे पूरे भारत में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।

पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात में उत्तरायण, आंध्र प्रदेश में भोगी, और केरल में विशु कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।

हर राज्य की अपनी परंपराएं, रीति-रिवाज और खाने-पीने की खासियतें हैं, जो इस पर्व को और भी रंगीन बनाती हैं।

गुजरात में मकर संक्रांति को उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है, और पतंग उड़ाना, सबसे प्रमुख परंपरा है।

पंजाब में लोहड़ी का त्योहार ठंड को भगाने के लिए अलाव जलाकर मनाया जाता है। दोस्तों और परिवार के साथ आग के पास बैठकर, गजक, मूंगफली, रेवड़ी और मक्का खाते हुए लोकगीत गाने से उत्सव का आनंद लेते हैं। 

दक्षिण भारत में पोंगल चार दिनों का त्योहार है, जिसमें लोग अपने घरों की अच्छी तरह से सफाई करते हैं और उन्हें सुंदर पुष्पलंकार डिजाइनों से सजाते हैं। भोगी मंटलू के रिवाज के रूप में वे अवांछित चीजों को अलाव में जलाते हैं। इसके बाद पोंगल पनाई करते हैं, जिसमें परिवार के सदस्य मिट्टी के बर्तन में चावल, दूध और गुड़ पकाते हैं और उसे उफ़ान मारने देते हैं। यह अनुष्ठान बहुतायत और समृद्धि का प्रतीक है।

ऐसे ही कई रीति-रिवाज और उत्सव पूरे देश में इस खूबसूरत फसल पर्व को मनाते हैं, जो आगे आने वाले गर्म और खुशहाल दिनों का वादा करता है।

परंपराओं की निरंतरता:

मकर संक्रांति के उत्सव में परंपराओं का पालन बड़ी श्रद्धा से किया जाता है।

घरों की साफ-सफाई, रंगोली बनाना, पवित्र स्नान, देवताओं का पूजन, पतंग उड़ाना, और स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाना, ये सब इस पर्व के अभिन्न अंग हैं।

तिल के लड्डू, गुड़ से बनी मिठाइयां, खिचड़ी, और पोंगल जैसे व्यंजन हर किसी के मुंह में पानी ला देते हैं।

भविष्य की उम्मीदों का उजाला:

मकर संक्रांति सिर्फ अतीत का स्मरण नहीं, बल्कि भविष्य की उम्मीदों का उजाला भी है।

यह हमें नए साल की शुरुआत का संदेश देता है, जो सकारात्मकता और खुशियों से भरा होता है।

पतंग उड़ाना इसी आशा का प्रतीक है, कि हम अपनी उम्मीदों को ऊंचा उड़ाएं और उन्हें पूरा करने का प्रयास करें।

निष्कर्ष:

मकर संक्रांति का इतिहास, संस्कृति और परंपराओं का एक खूबसूरत संगम है। यह हमें अपनी जड़ों से जुड़ने, कृषि का सम्मान करने, और भविष्य की उम्मीदों का जश्न मनाने का अवसर देता है।

तो आइए इस मकर संक्रांति को मिलकर मनाएं, अपने प्रियजनों के साथ खुशियां साझा करें, और नए साल की शुरुआत को एक सकारात्मक नोट पर अपनाएं।


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1 Comment

  • अति सुंदर

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