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शीतला माता: शीतलता और बच्चों के स्वास्थ्य की देवी. शीतला माता, जिन्हें शीतला अष्टमी या बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं।
उन्हें संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी माना जाता है, विशेष रूप से चेचक और बुखार।
शीतला माता का पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को मनाया जाता है।
शीतला माता का महत्व
- शीतला माता शक्ति अवतार हैं और भगवान शिव की जीवनसंगिनी हैं।
- शीतला माता को स्वच्छता की देवी भी कहा जाता है।
- देहात में चेचक को शीतला माता का प्रकोप माना जाता है।
- शीतला माता की कृपा से रोगी के रोग नष्ट हो जाते हैं।
- शीतला माता गर्दभ (गधा) पर सवार होती हैं और अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं।
- शीतला माता के संग ज्वरासुर, हैजा, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण और रक्तवती देवी विराजमान होती हैं।
- शीतला माता क्षत्रिय जाति (कुम्हार, गुर्जर, जाट, यादव,राजपूत, आदि)की कुल देवी है।जयपुर के कच्छवाहा राजपूत इस देवी को अपनी कुल देवी के रूप में पूजते हैं।
शीतला माता की उत्पत्ति
स्कंद पुराण के अनुसार, शीतला माता की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी। वे भगवान शिक के पसीने से बने ज्वरासुर को साथ लेकर धरती पर आई थीं।
शीतला माता के हाथों में दाल के दाने थे, जो विषाणुओं का प्रतीक हैं।
जब राजा विराट ने शीतला माता को अपने राज्य में रहने के लिए स्थान नहीं दिया, तो माता क्रोधित हो गईं। उनके क्रोध से राजा की प्रजा को लाल लाल दाने निकल आए और लोग गर्मी से मरने लगे।
तब राजा विराट ने माता के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध और कच्ची लस्सी चढ़ाई। तभी से हर साल शीतला अष्टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडा भोजन चढ़ाने लगे।
शीतला माता का स्वरूप और स्तोत्र शीतलाष्टक
शीतला माता का स्वरूप:
- स्कंद पुराण के अनुसार, शीतला माता का वाहन गर्दभ (गधा) है।
- वे अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं।
- इनके साथ ज्वरासुर, हैजा, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण और रक्तवती देवी भी विराजमान होती हैं।
स्तोत्र शीतलाष्टक
स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी।
शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है।
शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:
“ | वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।। | „ |
- अर्थात
गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं।
शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं।
हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए।
कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
मान्यता अनुसार इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।
विशेष भोजन: स्वाद और परंपरा का मेल
शीतला माता की पूजा में भोजन का विशेष महत्व होता है. इसमें परंपरागत व्यंजनों का प्रयोग किया जाता है, जो न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि इनके पीछे एक खास मान्यता भी जुड़ी है:
- बासोड़ा: पूजा से एक दिन पहले दाल, चावल, सब्जी आदि बनाकर रख दिया जाता है और अगले दिन इन्हें माता को भोग लगाया जाता है. माना जाता है किबासोड़ा खाने से चेचक जैसी बीमारियां दूर होती हैं।
- पंजीरी: यह मीठा व्यंजन आटा, घी और चीनी से बनाया जाता है. पंजीरी सर्दियों में शरीर को गर्म रखने में मदद करती है और शीतला माता को प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है।
- ठंडाई: ठंड के मौसम में पीने वाला यह पेय शीतलता प्रदान करता है. दही, खसखस, सौंफ आदि से बनाई गई ठंडाई शीतला माता को भोग लगाने के साथ-साथ घर में भी पी जाती है।
पूजा विधि: आस्था और शुद्धता का ध्यान
शीतला माता की पूजा में साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है.
आइए जानते हैं पूजा की सरल विधि:
- पूजा से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ कर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
- चौकी पर कलश स्थापित कर उसमें जल भरें और आम के पत्ते से ढक दें।
- कलश के पास शीतला माता की तस्वीर रखें और माता को फल, फूल और भोग अर्पित करें।
- दीप जलाएं और शीतलाष्टक का पाठ करें।
- पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें।
शीतला माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए:
- शीतला माता की पूजा करें।
- शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ करें।
- शीतला माता को ठंडा भोजन चढ़ाएं।
- शुद्धता और स्वच्छता का ध्यान रखें।
शीतला माता की कृपा से आप सभी रोगों से मुक्त रहें और शीतल और स्वस्थ जीवन का आनंद लें! शीतला माता: शीतलता और बच्चों के स्वास्थ्य की देवी!
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